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Showing posts from January, 2010

कहाँ गए नेताजी, कब खुलेगा मौत का राज?

इस मर्तबा भी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन हर साल की तरह ही मनाया गया और रस्मी तौर पर उन्हें याद किया गया , पर आजादी के बासठ साल से ज्यादा गुजर जाने के बावजूद 23 जनवरी 1897 को जन्मे भारत के स्वतंत्रता आदोलन के इस नायक की मौत के बारे में सही जानकारी अब तक लोगों को नहीं मिल पाई है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान आखिर कैसे गई? यह एक ऐसा सवाल है, जो हर हिंदुस्तानी को सोचने पर मजबूर कर देता है। बीते दिनों सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारियों के बाद इस अनसुलझी पहेली के तार और ज्यादा उलझते नजर आ रहे हैं। पर सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर नेताजी की मौत की गुत्थी को सुलझाने के लिए कोई सुगबुगाहट नजर नहीं आ रही है। सरकारी महकमा कहता आया है कि 1945 में हुई विमान दुर्घटना में ही नेताजी की मौत हो गई। पर इस महान देशभक्त में रुचि रखने वालों और नेताजी पर अध्ययन करने वालों का दावा है कि नेताजी की जान विमान हादसे में नहीं गई थी। पर अहम सवाल यह है कि ये दावे तथ्यों और तर्को की कसौटी पर कितना खरे उतरते हैं? 18 अगस्त 1945 को कथित तौर पर ताईवान में एक विमान दुर्घटना हुई थी। भारत सरकार कहती रही...

नहीं रहे ज्योति बसु

ज्योति बसु नहीं रहे। 95 साल की उम्र में उन्होंने अलविदा कहा। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने बहुत सारी बुलंदिया तय कीं जो किसी भी राजनेता के लिए सपना हो सकता था। 1977 में काग्रेस की पराजय के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल का मुख्य मंत्री बनाया गया था और जब शरीर कमजोर पड़ने लगा तो उन्होंने अपनी मर्जी से गद्दी छोड़ दी और बुद्धदेव भट्टाचार्य को मुख्यमंत्री बना दिया गया। 1977 के बाद का उनका जीवन एक खुली किताब है। मुख्यमंत्री के रूप में उनका सार्वजनिक जीवन हमेशा कसौटी पर रहा, लेकिन उनको कभी किसी ने कोई गलती करते नहीं देखा, न सुना। 1996 की वह घटना दुनिया जानती है, जब वे देश के प्रधान मंत्री पद के लिए सर्वसम्मत उम्मीदवार बन गए थे, लेकिन दफ्तर में बैठकर राजनीति करने वाले कुछ साचाबद्ध कम्युनिस्टों ने उन्हें रोक दिया। अगर ऐसा न हुआ होता तो देश देवगौड़ा को प्रधान मंत्री के रूप में न देखता। बहरहाल बाद के समय में यह भी कहा कि 1967 में प्रधानमंत्री पद न लेना मा‌र्क्सवादियों की ऐतिहासिक भूल थी। उस हादसे को ऐतिहासिक भूल मानने वालों में भी बहुत मतभेद है। 1977 में मुख्य मंत्री बनने के बाद वे एक राज्य के मुखिया थे...

सच्चाई किया है

picchle dino teen आतंकी की फरारी पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू है-मगर इसके पीछे की सच्चाई को कोई नहीं जानता-असल हकीक़त किया है यह तो आने वाला वक़त h इ बताएगा मगर इतनी बात ज़रूर है के इस मामले में सर्कार और पुलिस की नियत ठीक नहीं है-ख्याल रहे के लाल किला कांड में सजा पूरी होने के बाद हिरासत से तीन पाकिस्तानी आतंकियों की फरारी से दिल्ली पुलिस ने अपना पल्ला पूरी तरह झाड़ लिया है। गृह मंत्रालय के कारण बताओ नोटिस के जवाब में दिल्ली पुलिस ने तीनों आतंकियों की फरारी का जिम्मा परोक्ष रूप से गृह मंत्रालय पर ही डाल दिया है। दिल्ली पुलिस ने अपने जवाब में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नियमों और अपनी सीमाओं का हवाला देते हुए साफ कहा है कि सजा पूरी होने के बाद तीनों आतंकी विदेशी नागरिक क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय [एफआरआरओ] की सुपुर्दगी में थे। और यह कार्यालय गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है।