लोगों के दिल में आज भी धड़कते हैं जेपी
भ्रष्टाचार और सत्ता की तानाशाही के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सन 1974 में संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजाया था। क्रांति के उनके इस आह्वान से पूरा बिहार आंदोलित हो उठा था। आज भी जेपी आंदोलन की यादें लोगों के दिलो-दिमाग में रची-बसी हैं। नौजवानों ने इसमें खास भूमिका निभाई थी। लेकिन लोगों को इस बात का मलाल है कि आंदोलन के बाद सरकार तो बदली, लेकिन व्यवस्था आज भी नहीं ज्यों की त्यों है। जबकि लालू यादव व नीतीश कुमार सरीखे सूबे के कद्दावर नेता कभी जेपी आंदोलन के ही सिपाही रहे हैं।
जेपी आंदोलन के एक सिपाही रहे पश्चिमी चंपारण के ठाकुर प्रसाद त्यागी के लिए जेपी आज भी आदर्श हैं। रामपुकार मिश्र कहते हैं 'जेपी को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नई पीढ़ी को उनकी जीवनी पढ़ाई जानी चाहिए।' अजय सुहाग की माने तो जेपी ने जिस छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की नींव रखी, वह आज सिर्फ बेतिया में कायम है। बगहा के अखिलेश्वर पांडेय, सुधाकर तिवारी व उमेश उपाध्याय ने भी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी। अखिलेश्वर पांडेय व सुधाकर तिवारी के मुताबिक वे लोग नरकटियागंज टीपी वर्मा कालेज के छात्र थे। क्रांतिकारी भाषणों से प्रेरित होकर दोनों आंदोलन में कूद पड़े। जेपी के आह्वान पर वे विधानसभा की कार्रवाई बंद कराने पटना भी पहुंचे। गिरफ्तारी हुई। उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल भेजा गया। 350 लोगों के साथ एक माह 5 दिन बंद रहे।
उमेश उपाध्याय कहते हैं कि वे एमजेके कालेज में अध्ययनरत थे। इंटर की परीक्षा शुरू होने वाली थी। जेपी के आह्वान पर छात्रों ने परीक्षा का बहिष्कार किया। प्रदर्शन के दौरान उन्हें बेतिया कारागार में डाल दिया गया। बकौल, उमेश तिवारी जेपी का सपना अधूरा है। मुजफ्फरपुर में जेपी के विचारों को शिद्दत से जीने वाले शशिकांत झा स्वीकार करते हैं कि आंदोलन से वे इतने गहरे से जुड़ गए थे कि उन्होंने पश्चिमी चंपारण के नवल उच्च विद्यालय की हेडमास्टरी छोड़ दी। आपातकाल में जेल भी जाना पड़ा।
वाजपेयी भी बंद थे मोतिहारी जेल में
चंपारण की मिंट्टी में क्रांति की तासीर है। चाहे अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ बापू का सत्याग्रह हो या लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेपी की संपूर्ण क्रांति। चंपारण की धरती ने ही उसे ऊर्जा प्रदान की। जेपी आंदोलन के दौरान यहां के छात्र- नौजवान हजारों की संख्या में 'बिहार भी गुजरात बनेगा, चंपारण ही शुरुआत करेगा' के गगनभेदी नारों के साथ सड़कों पर उतरकर जेल भर रहे थे। जोश इतना कि यहां की जेल भी छोटी पड़ने लगी। जेल गए नेताओं से मिलने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां आए थे। जब उन्हें मुलाकात की अनुमति नहीं मिली तो वे डीएम आवास के सामने धरना पर बैठ गए। स्थिति की भयावहता को भांपकर तत्कालीन डीएम विनय कुमार सिंह ने जनसंघ के जिलाध्यक्ष व पूर्व विधायक राय हरिशंकर शर्मा को तुरंत रिहा कर दिया। इस पर वाजपेयी ने गुनगुनाया था-'मैंने कैद मांगी थी, रिहाई तो नहीं मांगी..।' बस, इतनी सी बात से चिढ़कर प्रशासन ने शर्मा के साथ अटल बिहारी वाजपेयी व कैलाशपति मिश्र को भी जेल में डाल दिया।
जेपी आंदोलन के एक सिपाही रहे पश्चिमी चंपारण के ठाकुर प्रसाद त्यागी के लिए जेपी आज भी आदर्श हैं। रामपुकार मिश्र कहते हैं 'जेपी को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नई पीढ़ी को उनकी जीवनी पढ़ाई जानी चाहिए।' अजय सुहाग की माने तो जेपी ने जिस छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की नींव रखी, वह आज सिर्फ बेतिया में कायम है। बगहा के अखिलेश्वर पांडेय, सुधाकर तिवारी व उमेश उपाध्याय ने भी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी। अखिलेश्वर पांडेय व सुधाकर तिवारी के मुताबिक वे लोग नरकटियागंज टीपी वर्मा कालेज के छात्र थे। क्रांतिकारी भाषणों से प्रेरित होकर दोनों आंदोलन में कूद पड़े। जेपी के आह्वान पर वे विधानसभा की कार्रवाई बंद कराने पटना भी पहुंचे। गिरफ्तारी हुई। उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल भेजा गया। 350 लोगों के साथ एक माह 5 दिन बंद रहे।
उमेश उपाध्याय कहते हैं कि वे एमजेके कालेज में अध्ययनरत थे। इंटर की परीक्षा शुरू होने वाली थी। जेपी के आह्वान पर छात्रों ने परीक्षा का बहिष्कार किया। प्रदर्शन के दौरान उन्हें बेतिया कारागार में डाल दिया गया। बकौल, उमेश तिवारी जेपी का सपना अधूरा है। मुजफ्फरपुर में जेपी के विचारों को शिद्दत से जीने वाले शशिकांत झा स्वीकार करते हैं कि आंदोलन से वे इतने गहरे से जुड़ गए थे कि उन्होंने पश्चिमी चंपारण के नवल उच्च विद्यालय की हेडमास्टरी छोड़ दी। आपातकाल में जेल भी जाना पड़ा।
वाजपेयी भी बंद थे मोतिहारी जेल में
चंपारण की मिंट्टी में क्रांति की तासीर है। चाहे अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ बापू का सत्याग्रह हो या लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेपी की संपूर्ण क्रांति। चंपारण की धरती ने ही उसे ऊर्जा प्रदान की। जेपी आंदोलन के दौरान यहां के छात्र- नौजवान हजारों की संख्या में 'बिहार भी गुजरात बनेगा, चंपारण ही शुरुआत करेगा' के गगनभेदी नारों के साथ सड़कों पर उतरकर जेल भर रहे थे। जोश इतना कि यहां की जेल भी छोटी पड़ने लगी। जेल गए नेताओं से मिलने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां आए थे। जब उन्हें मुलाकात की अनुमति नहीं मिली तो वे डीएम आवास के सामने धरना पर बैठ गए। स्थिति की भयावहता को भांपकर तत्कालीन डीएम विनय कुमार सिंह ने जनसंघ के जिलाध्यक्ष व पूर्व विधायक राय हरिशंकर शर्मा को तुरंत रिहा कर दिया। इस पर वाजपेयी ने गुनगुनाया था-'मैंने कैद मांगी थी, रिहाई तो नहीं मांगी..।' बस, इतनी सी बात से चिढ़कर प्रशासन ने शर्मा के साथ अटल बिहारी वाजपेयी व कैलाशपति मिश्र को भी जेल में डाल दिया।
aaj ke din aapka ye lekh bahut mahattvpuen hai.....badhai
ReplyDeleteप्रिये मित्र आपका ब्लॉग अच्छा लगा आपका विषये सही है मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ कृपया इसे भी पढें और बताएं कि कैसा है और इसके बारे मैं सुझाव भी दें धन्येवाद .
ReplyDeleteह्त्त्प://व्व्व.आइना-इ-वक़्त.ब्लागस्पाट.com
is aandolan se nikle log satta ki chakachaundh me bah gaye aur JP kahin peechhe chhoot gaye
ReplyDeleteजे.पी. ने अपना सर्वस्व समर्पित किया व्यवस्था को दुरुस्त करने में. मगर उनके अनुयायिओं ने बहुत जल्द उन्हें भुला दिया.
ReplyDeletesahi kaha aapne.narayan narayan
ReplyDeleteआपका हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteआपके ब्लाग लेखन के लिए शुभकामनाऐं.
J.P. को उनके जन्मदिन पर याद करने एवं याद कराने के लिये धन्यवअद।
टिप्पणी वाला वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो.
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यहाँ भी आयें आपका स्वागत है,
http://www.sahdeo.blogspot.com
Sir do you even Ahtiram Clun .........
ReplyDeleteHad gone through here, think, Clun salute ....
www.samwaadghar.blogspot.com
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.........
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं....
www.samwaadghar.blogspot.com
bahut khub
ReplyDeleteaaj ke din aapka ye lekh bahut mahattvpuen hai.....badhai
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