हिंदी पत्रकारिता के एक युग का खतिमा
हिंदी पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ प्रभाष जोशी के निधन के साथ ही हिंदी पत्रकारिता के एक युग का अवसान हो गया। उन्हें परंपरा और आधुनिकता के साथ भविष्य पर नजर रखने वाले पत्रकार के रूप में सदा याद किया जाएगा। वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह ने कहा कि अब कागद कारे पढ़ने को नहीं मिलेगा, कागद अब कोरे ही रहेंगे। ऐसा लगता है, मंगलवार आधी रात सचिन के 17 हजार रन से एक तरफ उन्हें खुशी हुई और भारत की हार का आघात लगा..।
वरिष्ठ कवि और समालोचक अशोक बाजपेई ने कहा कि यह सिर्फ हिंदी पत्रकारिता का नुकसान नहीं है, बल्कि हिन्दी समाज और बुद्धिजगत की भी क्षति है। हिन्दी में उनके जैसे सर्वमान्य बुद्धिजीवी काफी कम है, जिन्हें सभी ध्यान से पढ़ते हों। उन्होंने कहा कि प्रभाष जी ने अनोखी लेखनी विकसित की और पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी को बेहतरीन गद्य दिए। कहां क्रिकेट और कहां कुमार गंधर्व, कहां राजनीति और कहां हिंद स्वराज, इन सभी विपरीत धु्रवों को एक साथ साधना हर किसी के बस में नहीं है।
मृत्यु की खबर पाकर प्रभाष जी के आवास पर पहुंचने वालों में भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र, पूर्व सांसद संतोष भारती व एम जे अकबर, हंस के संपादक राजेन्द्र यादव, एनडीटीवी के पंकज पचौरी, सीएनएन आईबीएन के राजदीप सरदेसाई, समाजसेवी सुनीता नारायण प्रमुख थे। ज्ञानपीठ के निदेशक रवीन्द्र कालिया ने समूचे ज्ञानपीठ परिवार की ओर से गहरी संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि प्रभाष जी हिन्दी पत्रकारिता का उज्ज्वल नाम थे और दिल्ली के सांस्कृतिक जीवन में उनकी उपस्थिति बेहद अहम थी। उन्होंने कहा कि वह क्रिकेट से लेकर राजनीति तक लिखने वाले हिन्दी के एक मात्र संपादक थे, उनकी राजनीति की समझ काफी गहरी थी और क्रिकेट पर वह दिल से लिखते थे। हिंदी समाचार का विश्लेषण करने में वह लोकप्रिय नाम थे।
हिंदी अकादमी के अध्यक्ष अशोक चक्रधर ने व्यक्तिगत क्षति बताते हुए कहा कि युग का अंत मुहावरा होता है, लेकिन प्रभाष जी के निधन के साथ ही परंपरा और आधुनिकता के साथ भविष्य दृष्टि रखने वाली बेलाग और निर्भीक पत्रकारिता के एक युग का सचमुच अवसान हो गया। उन्होंने कहा कि गांधीवादी होने के बावजूद क्रिकेट के प्रति उनका रागात्मक लगाव रहा जिसके चलते उनमें युवाओं जैसा जोश दिखाई देता था। हिंदी पत्रकारिता में क्रिकेट को जोड़ना उनका एक अहम योगदान रहा। उन्होंने कहा कि मालवी भाषा को पत्रकारिता में लाना उनका दूसरा सबसे बड़ा योगदान था। जोशी के निधन के साथ ही हिंदी ने राजेन्द्र माथुर की पीढ़ी का सबसे सशक्त हस्ताक्षर खो दिया।
हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने कहा कि मैं उन्हें हिंदी का तीसरा सबसे बड़ा पत्रकार [अज्ञेय और राजेन्द्र माथुर के बाद मानता हूं], जिन्होंने भाषा, प्रतिमानों और छवि को बदलने में अहम योगदान दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें क्रिकेट का बड़ा क्रेज था और क्रिकेट ही उन्हें ले डूबा..। मैंने उनसे अधिक क्रिकेट का क्रेजी पत्रकार नहीं देखा। वह हर विषय पर बेलाग बोलने वाले बुद्धिजीवी थे।
वरिष्ठ लेखक और स्तंभ लेखक महीप सिंह ने कहा कि जोशी जी ने हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्रीय स्तर तक उठाया और इसे गंभीर स्वरूप प्रदान करने में उनकी भूमिका अहम रही। उन्होंने कहा कि आपरेशन ब्ल्यू स्टार के दौरान उन्होंने बेखौफ होकर वे सारे विचार प्रकाशित किए, जो माहौल के विपरीत थे। ऐसा लगने लगा था कि हिंदी पत्रकारिता पक्षपाती हो गई है। उन्होंने कहा कि उनके साथ मेरे नजदीकी संबंध रहे और उनके जाने से हिन्दी पत्रकारिता का एक स्तंभ ढह गया।
दिल्ली विवि के हिंदी के विभागाध्यक्ष सुधीश पचौरी ने कहा कि प्रभाष जी का निधन हिंदी पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके रहने से ऐसा लगता था कि अगर कोई परेशानी आएगी, तो एक छाता हमारे ऊपर आकर तन जाएगा, लेकिन अब वो आभास छिन गया।
वरिष्ठ कवि और समालोचक अशोक बाजपेई ने कहा कि यह सिर्फ हिंदी पत्रकारिता का नुकसान नहीं है, बल्कि हिन्दी समाज और बुद्धिजगत की भी क्षति है। हिन्दी में उनके जैसे सर्वमान्य बुद्धिजीवी काफी कम है, जिन्हें सभी ध्यान से पढ़ते हों। उन्होंने कहा कि प्रभाष जी ने अनोखी लेखनी विकसित की और पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी को बेहतरीन गद्य दिए। कहां क्रिकेट और कहां कुमार गंधर्व, कहां राजनीति और कहां हिंद स्वराज, इन सभी विपरीत धु्रवों को एक साथ साधना हर किसी के बस में नहीं है।
मृत्यु की खबर पाकर प्रभाष जी के आवास पर पहुंचने वालों में भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र, पूर्व सांसद संतोष भारती व एम जे अकबर, हंस के संपादक राजेन्द्र यादव, एनडीटीवी के पंकज पचौरी, सीएनएन आईबीएन के राजदीप सरदेसाई, समाजसेवी सुनीता नारायण प्रमुख थे। ज्ञानपीठ के निदेशक रवीन्द्र कालिया ने समूचे ज्ञानपीठ परिवार की ओर से गहरी संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि प्रभाष जी हिन्दी पत्रकारिता का उज्ज्वल नाम थे और दिल्ली के सांस्कृतिक जीवन में उनकी उपस्थिति बेहद अहम थी। उन्होंने कहा कि वह क्रिकेट से लेकर राजनीति तक लिखने वाले हिन्दी के एक मात्र संपादक थे, उनकी राजनीति की समझ काफी गहरी थी और क्रिकेट पर वह दिल से लिखते थे। हिंदी समाचार का विश्लेषण करने में वह लोकप्रिय नाम थे।
हिंदी अकादमी के अध्यक्ष अशोक चक्रधर ने व्यक्तिगत क्षति बताते हुए कहा कि युग का अंत मुहावरा होता है, लेकिन प्रभाष जी के निधन के साथ ही परंपरा और आधुनिकता के साथ भविष्य दृष्टि रखने वाली बेलाग और निर्भीक पत्रकारिता के एक युग का सचमुच अवसान हो गया। उन्होंने कहा कि गांधीवादी होने के बावजूद क्रिकेट के प्रति उनका रागात्मक लगाव रहा जिसके चलते उनमें युवाओं जैसा जोश दिखाई देता था। हिंदी पत्रकारिता में क्रिकेट को जोड़ना उनका एक अहम योगदान रहा। उन्होंने कहा कि मालवी भाषा को पत्रकारिता में लाना उनका दूसरा सबसे बड़ा योगदान था। जोशी के निधन के साथ ही हिंदी ने राजेन्द्र माथुर की पीढ़ी का सबसे सशक्त हस्ताक्षर खो दिया।
हंस के संपादक राजेन्द्र यादव ने कहा कि मैं उन्हें हिंदी का तीसरा सबसे बड़ा पत्रकार [अज्ञेय और राजेन्द्र माथुर के बाद मानता हूं], जिन्होंने भाषा, प्रतिमानों और छवि को बदलने में अहम योगदान दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें क्रिकेट का बड़ा क्रेज था और क्रिकेट ही उन्हें ले डूबा..। मैंने उनसे अधिक क्रिकेट का क्रेजी पत्रकार नहीं देखा। वह हर विषय पर बेलाग बोलने वाले बुद्धिजीवी थे।
वरिष्ठ लेखक और स्तंभ लेखक महीप सिंह ने कहा कि जोशी जी ने हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्रीय स्तर तक उठाया और इसे गंभीर स्वरूप प्रदान करने में उनकी भूमिका अहम रही। उन्होंने कहा कि आपरेशन ब्ल्यू स्टार के दौरान उन्होंने बेखौफ होकर वे सारे विचार प्रकाशित किए, जो माहौल के विपरीत थे। ऐसा लगने लगा था कि हिंदी पत्रकारिता पक्षपाती हो गई है। उन्होंने कहा कि उनके साथ मेरे नजदीकी संबंध रहे और उनके जाने से हिन्दी पत्रकारिता का एक स्तंभ ढह गया।
दिल्ली विवि के हिंदी के विभागाध्यक्ष सुधीश पचौरी ने कहा कि प्रभाष जी का निधन हिंदी पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके रहने से ऐसा लगता था कि अगर कोई परेशानी आएगी, तो एक छाता हमारे ऊपर आकर तन जाएगा, लेकिन अब वो आभास छिन गया।
प्रभाष जी को हमारी और संस्कारधानी जबलपुर की ओर से विनम्र श्रद्धांजलियाँ .
ReplyDelete- विजय तिवारी ' किसलय '