खूबसूरत दिल्ली की हकीकत

दिल्ली को चमकाने की जितनी कोशिश की जारही है सच्चाई ये है के आम आदमी को उस से कोई फैदा होने वाला नहीं है -इस कमर तोडती महंगाई में भला आम आदमी को जहाँ पेट भर भोजन ना मिलता हो ,पिने के लिए पानी दस्तेयाब ना हो .लोग पानी के लिए पूरी रात दर बदर भटकते हों ,अपनी मीठी नींद को सिर्फ पानी के लिए बर्बाद करते हों उन्हें खुबसुरत पार्क और ऊँचे फ्लाई ओवर से किया फैदा?दीली वालो को इस महंगाई में रसोई गेस की जो थोड़ी बहुत सस्ती मिलती थी हकुमत ने उस ससिदी को भी च्चिन लिया -और धीरे धीरे दूसरी चीजों को भी महंगी करती जारही है -ऐसे में आम लोगे लिए दिल्ली महंगी रजधानी बानगी है -ख्याल रहे के अक्टूबर 2010 में कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन की कामयाबी के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार सिंगापुर और पेरिस की तर्ज पर दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने में जुटी हुई हैं। जगह-जगह फ्लाई ओवर, सब-वे, फुट ब्रिज, जल निकासी लाइन, पार्किग स्थल, मेट्रो लाइन, सड़कों को चौड़ा एवं बेहतर बनाने के कार्य युद्धस्तर पर चल रहे हैं।
इससे दिल्ली के आम बाशिंदों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं मिलने पर भला किसी को क्या ऐतराज हो सकता है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस सबकी अत्यंत महंगी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ रही है। न सिर्फ बस किराए और पानी के बिल बहुत महंगे हो गए, बल्कि साधारण मकानों [चाहे डीडीए या अनियमित कालोनियां हों] की कीमतें भी आसमान छू गई हैं। आते-जाते वाहनों से सड़कें इतनी व्यस्त हो गई हैं कि अनेक पैदल यात्री रोजाना दुर्घटना के शिकार होते हैं।
कहने का मतलब यह है कि सुविचारित योजनाओं के अभाव में आम नागरिक बेहाल है, जबकि मध्यवर्ग, उच्च मध्यवर्ग, उच्चतर वर्ग, रीयल एस्टेट के मालिक-कारोबारी और उद्यमी मोटे फायदे की मलाई पा रहे हैं।
उच्च वर्ग, उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के लोगों की क्रय शक्ति होने से वे महंगी जमीन-जायदाद खरीदने-रहने में समर्थ हैं, सरकारी बसों की व्यवस्था न होने पर वे अपने निजी वाहनों से दूर-दराज तक आवागमन कर सकते हैं, लेकिन नीति निर्धारकों को यह सोचने की कतई फुरसत नहीं कि आवासीय दृष्टि से विकसित हो रहे इन क्षेत्रों में गरीब या आमलोग कहां और किस हाल में रह पाएंगे? क्या वे बसों का बढ़ा किराया, पानी-बिजली के महंगे बिल और आटा-सब्जियों-चीनी के आसमान छूते दाम, महंगा मकान किराया, बच्चों के स्कूलों की मोटी फीस चुकाने में सक्षम हैं?
आखिर आम दिल्लीवासी या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निवासी इस कमरतोड़ महंगाई में अपने परिवार का गुजारा कैसे चला सकता है?
सरकार के विभिन्न खर्चीले अभियानों और लंबे-चौड़े दावों के बावजूद अभी तक न तो सभी लोगों के राशन कार्ड बने हैं, न ही मतदाता पहचान पत्र, न तो उनके लिए पर्याप्त स्कूल हैं, न ही चिकित्सा और परिवहन सुविधाएं। सरकार की सारी ऊर्जा दिल्ली को चमकाने के लिए रंगरोगन में लगी है, जबकि प्रत्येक नागरिक चाहे वह अमीर हो या गरीब, उसे अंदरूनी रूप से समर्थ बनाया जाना चाहिए।
यह तभी मुमकिन है, जब समावेशी विकास को तरजीह दी जाए। दिल्ली में आम लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा, शिक्षा और परिवहन सुविधाओं की अनदेखी यही प्रकट करती है कि देर-सवेर इस शहर में गरीबों का जीवन दुश्वार हो जाएगा। दिल्ली सरकार हो या केंद्र सरकार, उनके विकास एजेंडे और नीतियों की घोषणा में आम जनता को तवज्जो देने की लंबी-चौड़ी घोषणाएं तो बहुत की जाती हैं, लेकिन उन पर मुस्तैदी से अमल देखने को नहीं मिलता।

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