तेरे एहसान रह रह कर हमेशा याद आएँगे

मंगलवार, 16 अक्टूबर, 2012  शहाबूद्दीन साक़िब
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17 अक्टूबर एस एस डे पर विशेष  

दुनिया में कई ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिन्हों  ने कुछ ऐसे काम किये हैं जिनकी वजह से दुनिया न सिर्फ उन्हें याद करती है बल्कि वह कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसकी वजह उनका नाम इतिहास के पन्नों  में दर्ज हो जाता है। ऐसे ही लोगों में से एक हैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान। सर सैय्यद अहमद खान दुनिया के दुसरे बड़े लोगों के मुकाबले कुछ इस प्रकार अलग हैं कि वह विश्व के ऐसे शायद व्यक्तित्व हैं जिनका जन्मदिन 17 अक्टूबर लगभग दुनिया के हर मुल्क में मनाया जाता है। असल में अलीगढ में पढने वालों के साथ एक ख़ास बात यह जुडी होती है की वह दुनिया में कहीं भी चले जाएँ अलीग बिरादरी को नहीं भूलते और यही कारन है की हर देश अलीग बिरादरी उनके जन्म दिन को बड़े जोश के साथ मनाती  है। ऐसा क्यों न हो सर सैय्यद अहमद खान ने देश के लिए और विशेष तौर पर मुसलामानों की शिक्षा के लिए जो काम किये हैं वह अब तक कोई दूसरा नहीं कर सका। उनहों ने जो बलिदान दिया है वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय दर और दीवार से आज भी सदा दे रही हैं। अकबर इलाहाबाड़ी ने उनके बारे में कहा था हमारी बातें ही बातें सैयद काम करता था। यह सर सैय्यद की नेक नियति का कमाल था इतने साल बीत जान एके बाद हज़ार तरह की कोशिशों के बाद भी उनके जरिया स्थापित की गयी यह संस्था न सिर्फ कायम है बल्कि हर आने वाले दिन विकास के नए नए आयाम स्थापित कर रही है।

 इतिहास गवाह है कि सर सैय्यद राष्ट्र सुधारक , चिंतक , लेखक, मुसलमानों के नेता और एक अच्छे इंसान थे. अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था.लूटते  लोग, उजड़ती  हुई बस्तियां. वह लोगों की परेशानियाँ देख कर रात रात भर नहीं सोते और खून के आँसू रोते रहते।  देश के पिछड़ेपन पर उन्हें तरस आता. उन्हें खुद is baat का अहसास हुआ की देश के लोगों खासतौर पर मुसलमानों को उनकी सख्त ज़रूरत है। वह भी चाहते the की भारत के लोग भी दुनिया में ना कमाएं और प्रतिष्ठित जीवन गुजारें। इसके लिए क्या क्या जा सकता है यह सोच सोच कर वह हमेशा परेशान रहते।   सर सैय्यद यह देख कर बड़े मायोस रहते की भारत में मुसलमानों की हालत बेहतर नहीं है। उन्हें जब इस बात का पूरी तरह से अहसास हो गाय की मुसलमानों की हालत बेहतर करने के लिए शिक्षा पर कम करने सबसे ज़्यादा ज़रूरी है तो उनहोंने पूरी तरह से उसी पर काम कर्ण शुरू कर दिया। इंग्लैंड जाकर उनहों ने वहाँ ऑक्सफोर्ड और कंब्रिज यूनिवरसिटि का दौरा किया और वहाँ से उनहों ने कई ऐसी चीज़ें सीखीं जिसका प्रयोग उनहों भारत में आकार किया।   सर सैय्यद ने 1870 में अलीगढ़ में मदरस्तूल उलूम  के नाम से एक संस्था की स्थापना की, बाद संस्थान का नाम ऐंग्लो ओरिएंटल  कॉलेज पड़ा  सर सैय्यद की मृत्यु के बाद 1920 यास में संस्थान ने विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल कर लिया और आज पूरी दुनिया में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से परिचित है.

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सर सैय्यद ने केवल मुसलमानों के लिए ही बलिदान नहीं दिया या सिर्फ उनके बारे में ही नहीं सोचा बल्कि वह देश में मौजूद दूसरे धर्म के लोगों के बारे में भी सोचते थे। वह देश में हिन्दू और मुसलमानों की एकता के लिए  हमेशा कोशिश करते रहे।  सर सैय्यद का कहना था मैंने बार बार कहा है और फिर कह रहा हूँ कि भारती एक दुल्हन की तरह है, जो सुंदर और इसकी रसीली दो आँखें हिंदू मुसलमान हैं, अगर दोनों में आपस में संबंध  रखें तो प्यारी सी दुल्हन भेनगी हो जाएगा और अगर वह एक दूसरे को बर्बाद  कर देंगे तो अंधी हो जाएगी सो, आए भारत में  रहने वाले हिंदू मुसलमानों अब तुम्हें अधिकार है कि तुम उसे भेंगा बना दो या अंधा बना दो या सलामत रखो '

सर सैयद जीवन का अध्ययन करें तो यह अच्छी तरह पता चलता है की उन्हें कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

लेकिन इरादा मज़बूत और मंजिल पाने की इच्छा हो तो राह में होने वाली परेशानियों  का एहसास नहीं होता बल्कि दर्द ही मरहम बन कर निराशा को समाप्त  करता है. चूंकि  सर सैय्यद एक खास मक़सद पर काम कर रहे थे इसलिए लोगों के लाख बुरा कहने के बावजूद उनहों ने किसी का बुरा नहीं माना और ईमानदारी से अपना काम करते रहे।  सर सैय्यद को अपना मिशन पूरा करने में कई परेशानियाँ आई मगर उनहों ने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत से एक सही दिशा में आगे बढ़ते गए। और फिर धीरे धीरे वह कर दिखया जो अब तक कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सका है और शायद कर ही नहीं पाये।

वह जानते थे कि भारत के मुसलमानों को क्या चाहिए इस लिए खुद अपने लोगों के विरोध के बावजूद भी उनहों ने हिम्मत नहीं हारी। यह  सर सैय्यद का ही कमाल था की जो लोग उन्हें बुरा कहते थे खुद उनहों ने और बाद में उनके समर्थकों ने भी मान कि  सर सैय्यद जो कर रहे थे वही सही था।

ऐसा नहीं है की सर सैय्यद ने केवल एक शैक्षणिक संस्था स्थापित कर दी बल्कि अपने जमाने में वह मुसलमानों को हर प्रकार से मजबूत देखना चाहते थे। उनहों ने यह सोच लिया था और यही सही भी था की यदि मुसलमानों की शैक्षणिक हालत बेहतर हो जाये उनकी सारी सामस्या समाप्त हो जाएगी।  सर सैय्यद के बारे में तो कुछ  लोग यहाँ तक कहते है की आज भारत में जिस हद तक मुसलमानों में शिक्षा है वह बहुत हद तक उनकी वजह से ही है.अब तो सर सैय्यद हमारे बीच नहीं रहे लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवरसिटि के रूप में उनहों ने जो एक दुनिया का विशालतम वृक्ष खड़ा कर दिया है वह क़यामत तक उनकी याद दिलाता रहेगा।

                              लेखक अलीग है और इंकलाब से जुड़े हैं

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