नरेंद्र मोदी को माफी? कभी नहीं


नरेंद्र मोदी को माफी? कभी नहीं

सोमवार, 26 नवम्बर, 2012  शहाबूद्दीन साक़िब
 
 

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सशर्त माफी देने की पूर्व सांसद और जाने माने मुस्लिम बुद्धिजीवी  सैयद शहाबुद्दीन का प्रस्ताव मुस्लिम संगठनों ने सिरे खारिज करते हुए उस पर गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त की है और साफ साफ कहा है  कि गुजरात में मुस्लिम दंगों के मास्टर माइंड राज्य के मुख्य मंत्री  मोदी को कभी माफ नहीं किया जा सकता। ज्ञात राजे जी ऐसी खबरें आ रही है कि   गुजरात के मुख्यमंत्री 2002 के दंगों पर खेद प्रकट करते हैं तो देश के दस बड़े मुस्लिम संगठन  मुस्लिम मतदाताओं से मोदी को वोट देने की अपील कर सकते हैं।

गुजरात दंगों पर किसी तरह के समझौते से वैसे तो हमेश ही मुस्लिम संगठन इंकार करते रहे हैं  लेकिन हम इस तथ्य को अनदेखा नहीं कर सकते कि पिछले कुछ सालों में मुसलमानों के एक वर्ग में इस संबंध में नरमी देखी जा रही है, यह वर्ग गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार के मुख्य पापी मुख्यमंत्री लिए कहीं न कहीं नरमी बरतने के पक्ष में है। मगर ऐसा देखा गया है कि अभी वे खुलकर सामने नहीं आर रहे हैं लेकिन जब कभी उन्हें अवसर मिलता है तो दिल की बात इन की ज़बान पर आ जाती है.

यहाँ यह बात गौर करने कि है कि जिस मोदी ने गुजरात में हजारों मुसलमानों को मौत के घाट उतरवाया, जिस मोदी ने महिलाओं से उनका पति छीना, बच्चों से उनके मटा पिता छीने और जिस मोदी के लोगों ने गर्भवती महिलाओं का न सिर्फ रेप किया बल्कि उनके पेट में पल रहे बच्चों को भी मार दिया उस मोदी को अगर कोई माफ करने कि बात कर रहा है तो यह राजनीति ही काही जा सक्ति है।

गौर करने की बात यह है कि सबसे पहले गुजरात दंगों पर दारूल उलूम देवबंद के पूर्व मोहतमिम मौलाना गुलाम मोहम्मद  वासतानवी ने  एक विवादास्पद ब्यान दिया था जिस में उनहों ने मोदी के कामों कि प्रशंसा कि थी। इस के बाद न केवल उन्हें बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा था बल्कि उन्हें  इस बड़े पद से भी हाथ धोना पड़ा था।  हालांकि मौलाना ने इससे इनकार किया था, लेकिन चूंकि विवाद ने तूल पकड़ लिया था और इस संबंध में दारुल उलूम देवबंद राजनीति  गरमाने लगी थी इसलिए उन्हें मोहतमिम के गद्दी से अलग होना पड़ा था. मौलाना वसतानवी  एक बार फिर नरेंद्र मोदी के हवाले से इन दिनों सुर्खियों में है, लेकिन इस बार मामला उल्टा है इस बार उनपर  मोदी के खिलाफ भड़काऊ बयान देने का आरोप लगाया जा रहा है. भाजपा का कहना है कि कांग्रेस पार्टी के एक कार्यक्रम में वसतनवी ने जो कहा वह  राज्य शांतिपूर्ण वातावरण के खिलाफ है, इसलिए चुनाव आयोग मौलाना को गुजरात में प्रवेश न होने दे. इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव  में मौलाना खुलकर मोदी का विरोध कर रहे हैं और यही हम सब का पक्ष होना चाहिए क्योंकि साम्प्रदायिक राजनीति देश के मुसलमानों के लिए सबसे खतरनाक है.

 गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका पर पाकिस्तानी स्कॉलर ताहिरुल कादरी का नरम रुख भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है जिसे  अनदेखा करना किसी भी तरह से उचित नहीं है. ताहिर साहब ने अपने पहले दौरे गुजरात के अवसर पर 2002 के गुजरात दंगों पर मीडिया के एक सवाल के जवाब में कहा था कि पूर्व के दंगों को भूल जाओ और आगे बढ़ो।  उन्होंने मोदी की सराहना करते हुए कहा था कि 10 वर्ष में उनकी राज्य में दोबारा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ '

 ताहिर साहब के इस बयान की भी मुस्लिम संगठनों ने कड़ी निंदा की थी और कहा था कि उस समय जब गुजरात दंगों की दसवीं बरसी पर गुजरात सहित पूरे हिंदुस्तान में गम का महोऊल है , मुसलमान खौफ के उन दिनों को याद कर रहे हैं ऐसे समय में कादरी साहब का यह कहना कि दंगों को भूल जाओ मूसलमानों के घावों पर नमक डालने के बराबर है.

उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले अदालत ने गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार के आरोप में 22 लोगों को दोषी करार दे दिया है हालांकि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 61 को  सबूत के अभाव में बरी दिया गया, लेकिन मुख्यमंत्री सबसे करीबी माया कोडनानी को 28 वर्ष की सज़ा दी गई, ऐसे में यह  सवाल अपनी जगह अब  भी  कायम है कि  नरसंहार का नेतृत्व करने वाली कोडिंानी को मंत्री बनाने वाले मोदी खुद कैसे निर्दोष साबित हो सकते हैं। अब जबकि यह स्पष्ट हो गया है कि मोदी ने गुजरात में मुसलमानों की हत्या रोकने के संबंध में कोई रोल नहीं निभाया था बल्कि उनहों ने ही दंगाइयों को पूरी छूट दे रखी थी।

गुजरात के उच्च न्यायालय का यह फैसला भी  महत्वपूर्ण है  जिसमें सरकार को आदेश दिया गया  है कि वह दंगों से जुड़े पुलिस नियंत्रण कक्ष के रिकॉर्ड पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट को सौंपे जिन्होंने नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया है कि दंगों के दौरान उन्होंने पुलिस को यह निर्देश दिया था कि वह मुसलमानों के जान व माल की सुरक्षा नहीं करे. संजीव भट्ट इस बैठक में मौजूद थे इसलिए जब उन्होंने इस तथ्य का खुलासा किया तो उन्हें मोदी सरकार ने न सिर्फ हटा दिया बल्कि  झूता मुकदमा करके जेल भेज दिया था मगर भट्ट की लड़ाई जारी है।  मुसलमानों  को निराश होने की ज़रूरत नहीं है. संजीव भट्ट अकेले यह लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं बल्कि देश की कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक व्यक्ति मोदी को सज़ा दिलाने की लड़ाई जारी रखने हुए हैं और इंसाफ कि उम्मीद लगाए इन लोगों को देर सवेर इंसाफ मिल भी रहा है।  ताज़ा उदाहरण नरोदा पाटिया नरसंहार के आरोपियों को सजा मिलना है जिसमें मोदी की सबसे करीबी माया कोड नानी भी हैं जिन्हें 28वर्ष की सज़ा मिली है. यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि भारतीय दंगों के इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब किसी महिला विशेष रूप से एक पूर्व मंत्री और विधायक को सांप्रदायिक  दंगों में आजीवन कारावास की सजा दी गई हो. इन तथ्यों की रोशनी मेंराज्य मुख्यमंत्री को निर्दोष बताना या उनके प्रति नरम रुख दिखाना इस गुनाह में शामिल होने के बराबर है.

कुल मिलकर एक हक़ीक़त यह है और इसी को हर मुसलमान को भी समझना चाहिए कि सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों को यह पता है कि गुजरात दंगे में मोदी भी शामिल हैं। उनहों ने किसी को खुद से भले ही नहीं मारा हो लेकिन उनकी मदद पाकर ही दंगाइयों ने मुसलमानों को निशाना बनाया और हजारों बेगुनाह मुसलमान मारे गए। जो मोदी मुसलमानों के नरसंहार में शामिल हो उसे माफी देने कि बात मुसलमान ही करें यह तो किसी भी दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता । यदि कोई मुसलमान ऐसा करता है तो इसका मतलब यह है कि वह यह सब राजनीतिक लाभ के लिए कर रहा है। मोदी को किसी भी हाल में माफी दी ही नहीं जा सकती। उसे एक न एक दिन उसके किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी।


         लेखक पत्रकार हैं और उर्दू दैनिक इंकलाब से जुड़े हैं।

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