भाजपा इसलिए करती है साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक का विरोध


�भाजपा इसलिए करती है साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक का विरोध

मंगलवार, 10 दिसम्बर, 2013  शहाबूद्दीन साक़िब
 
 

यह कहावत बड़ी पुरानी है कि ' चोर की दाढ़ी में तिनका ' . कहा जाता है कि सदियों पहले जब किसी पर चोरी का आरोप लगाया जाता  था और वह शख्स  इस आरोप से इनकार करता  है तो उसके कानों में एक शब्द  डाल जाता था ' चोर की दाढ़ी में तिनका ' और फिर वह शख्स खुद को सबकी नजरों से बचाते हुए बार बार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए यह अनुमान लगाने की कोशिश करता  कि वास्तव में तिनका तो नहीं निकल आया और यही अंदाज उसे चोर साबित करने की दलील बन जाता था . पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर अपने कट्टरपंथी रुख को  दोहराते हुए कहा कि वह संसद में 'साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक (Prevention of Communal and Targeted Violence )  का विरोध करेगी . जब कभी सरकार ने इस बिल को लेकर मामूली सा भी संकेत दिया है , भाजपा के नेता बरसाती मेंढक की तरह  विरोध में एक साथ टर्टराने लगे हैं , क्योंकि उन्हें इस बात का बखूबी अंदाजा है कि सांप्रदायिक हिंसा का यह विधेयक अगर पारित हो गया तो नफरत फैलाने वाला उनका खेल हमेशा के लए खतम हो जाएगा , इसलिए वे नहीं चाहते कि किसी भी  तरह बिल  संसद में पेश हो .  यदि ये  बिल पास हो जाता है ( हालांकि इसकी उम्मीद कम है ) तो उन की चोरी जग जाहिर हो जाएगी और देश को समय समय पर सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोनक ने की उनकी मोहिम  पर  कदगन लग जाएगी . इस तरह उनकी राजनीति का एक महत्वपूर्ण पाठ बंद हो जाएगा . यही कारण है कि जब केंद्र सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में पेश करने की बात सामने आई तो राजया सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीता रमन ने सांप्रदायिक और लक्ष्य हिंसा रोकथाम विधेयक को भेदभावपूर्ण करार देते होए कहा कि संसद द्वारा इस तरह का कानून बनाना राज्यों के हितों में हस्तक्षेप है . हालांकि बाद में यह बात खुलकर सामने आ गई कि शीतकालीन सत्र की निर्धारित प्रक्रिया में 30 / अधिक बिल पेश हो रहे हैं मगर  उस में इस  अहम् बिल का कोई ज़िकर  नहीं है . संसद के दोनों सदनों में लगभग 38 / विधेयक पेश किए जाएंगे जिसमें ये बिल शामिल नहीं है .

इस संबंध में भाजपा का कहना है कि दर असल यह विधेयक राज्यों के अधिकार में एक तरह से हस्तक्षेप है ,  लेकिन सच्चाई यह है कि राज्यों के अधिकारकी बात तो महज एक बहाना है , भाजपा के पेट में दर्द का मुख्य कारण बिल के  मसौदा में हिंसा  के लिए बहुसंख्यक वर्ग को ही जिम्मेदार ठहरायाजाना  है , जो 100  प्रतिशत सही है . अब तक जिस राज्य में सांप्रदायिक दंगे या अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुए उनमें बहुसंख्यक वर्ग की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है . इसलिए उन्हें अपने सिर पर खतरे के बादल मंडराते नजर आते है -उसकी वजह ये है के साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक  का जो मसौदा तैयार किया गया है उसमें गुजरात  दंगों और उड़ीसा में 2008 में ईसाइयों के नरसंहार को विशेष रूप मद्देनजर रखा गया है . इन दोनों धार्मिक दंगों में सीधे राज्य सरकार के शामिल होने के कई सबूत सामने आ चुके हैं . जिस तरह गुजरात दंगों भारती के  माथे पर कलंक है इसी तरह 2008 में उड़ीसा के जिले कंधमाल में दलतों कि हत्या  भी . उड़ीसा के इतिहास का सबसे बड़ा लक्ष्य दंगा था जिसमें लगभग 38  लोगों की हत्या हुई थी और हजारों परिवार  घर बार छोड़ कर जंगल में शरण लेने को मजबूर हुए थे . इसी तरह सांप्रदायिक दंगा बिल का जो मसौदा तैयार किया गया है उसमें खास तौर गुजरात के दंगों में वहां की सरकार , पुलिस अधिकारी और अन्य सरकारी विभागों के योगदान और उनकी भूमिका को पूरी तरह से ध्यान में रखा गया है और यह बात साबित हो चुकी है कि 2002 में हुए गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों में मोदी सरकार हिंदू  बलवाइयों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर मुसलमानों को सबक सिखानेमें शामिल थी . जैसा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने बयान में मोदी को इस शर्मनाक दंगों के लिए दोषी ठहराचके हैं .

ऐसे ठोस सबूत के बावजूद ' विरोधी सांप्रदायिक दंगा बिल का विरोध करना कि इससे राज्य सरकार के अधिकार में केंद्र के हस्तक्षेप होगा और बहुसंख्यक वर्ग को बिना अपराध किए दोषी गिर दाना जाएगा भाजपा और भगवा जमातों कि चोचले बजी है जो देश में कई बार सांप्रदायिक हिंसा के द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना  बनाते रहे  है नहीं तो कमज़ोर वर्गों के लिए यह बिल देर सवेर न्याय प्राप्त करने का सबसे अच्छा माध्यम  है  क्योंकि एन ए सी के ड्राफ्ट की तजवीज  काफी महत्वपूर्ण हैं . जैसे दंगे हो ते ही पुलिस प्रमुखों सभी दूरसंचार सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों को इस क्षेत्र में टेलीफोन कॉल से संबंधित सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए नौ टीफकेशन जारी करेंगे . सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों रिकॉर्ड सुरक्षित रखने के लिए आदेश , पुलिस विभाग , पुलिस नियंत्रण कक्ष , सभी थानों के मामले डायरी , स्टेशन डायरी और मुकदमें से संबंधित दस्तावेज सुरक्षित रखना चाहिए . इन  सभी दस्तावेजों की जरूरत गुजरात में अदालती कार्रवाई के दौरान तीव्रता से महसूस की गई थी।

लेखक इंक़लाब दिल्ली में सब ऐडिटर हैं उनसे 9891763977पर संपर्क किया जा सकता है .

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