ठण्ड से मरती प्रजा और डांस का मज़ा लेता राजा
ठण्ड से मरती प्रजा और डांस का मज़ा लेता राजा
यह सब भारत जैसे देश में मुस्लिम के लिए ही सम्भव है। जिस नेता की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपनी जनता की रक्षा करे पहले तो वह उन्हें मरवाता है और फिर जब यह जनता राहत कैम्प में जानवरों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारती है तो यही नेता उन्हें वहाँ हर प्रकार की सहूलत देने के बजाये न उन्हें वहाँ से ज़बरदाती निकलवाता है बल्कि ठंड से मरती जनता और ठण्ड से मरते बच्चों की मौत पर अफ़सोस करने के बजाये बजाये अर्धनंग हीरोइनों के डांस देखता है। जी हाँ वह मुलायम जिन्हें मुल्ला मुलायम कहा जाता है उन्हों ने दिखा दिया है कि मुसलमानों से नफरत के मामले में वह भी किसी दुसरे कट्टर नेताओं से कम नहीं हैं।
यह सच है कि नेताओं की ज़बान जब चलने लगती है तो सारी हदों को पार कर जाती है और उस पर लगाम लगाना आसान नहीं होता , खैर से मामला कुर्सी हासिल कंर ने का होता तो यह लोग अपनी शराफत को भी ताक पर रख देते है , देश की इज्जत जनता के अहसान , अपनी ज़िम्मेदारी और पद का एहसास तो दूर की बात है . हिंदुस्तान में पिछले कुछ वर्षों में नेताओं की ज़बान दराज़ी के किस्से अधिक सामने आए हैं . राजनीतिक मामले हों कि सामाजिक या आर्थिक उन्होंने देश की जनता को मूर्ख बना ने कोई कसर नहीं छोड़ी . मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों पर हो रहे अत्याचार मुसलमानों का मसी्षा कहे जाने वाले और मुसलमानों के वोटों की बदौलत उत्तर प्रदेश के सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने वाले समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनकी सरकार में गृह सचिव अनिल गुप्त ने जिस तरह से मज़ाक उड़ाया उसने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया है , फिर भी हम उन्हें मुसलमानों का मसीहा या हमदर्द करार दें और उनकी शान में कसीदे पढ़ेंतो इस में किसी का दोष ? सिर पीटने की नौबत तब आती है जब उनकी बेतुकी बयानबाजी पर झट दी जाने वाली सफाई हम दिल से तसलीम कर लेते हैं और ज़बान की तलवार से दिए गए उनके घाव को नज़र अंदाज़ कर दे ते हैं , लेकिन उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने मुजफ्फर नगर और शामली के दंगों के ज़रिये जो नासूर दिए हैं वह शायद कभी नहीं भर सके. हम कतई नहीं कहते कि दंगों यूं ही हुए और इस के पीछे भारत की मुस्लिम दुश्मन ताक़तों का हाथ नहीं है , बल्कि यह सभी मुसलमानों को इस देश से मिटाने की साजिश का ही एक हिस्सा है जिसकी वजह से मुजफ्फर नगर में हिंदुस्तान का दूसरा गुजरात बना . भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी जैसे इंसानियत के कातिल को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना , उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए मोदी के बहुत क़रीबी और गुजरात दंगों के तजरबा कार अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया जाना , यह सब उन्हें भगवा साजिशों की कारस्तानी जरूर है , लेकिन मुजफ़्फ़रनगर के दिलखाराश घटना के लए जहाँ भगवा दल जिम्मेदार हैं , वहीं राज्य की बसपा और केंद्र की कांग्रेस सरकार पूरी तरह दोषी है . इस तथ्य से इनकार कि गुंजाइश नहीं है कि मुजफ्फर नगर दंगा और शामली में अगर मोदी के चहीतों ने मसलमानों के सर कि फसल काटी है तो मुलायम सिंह सरकार ने कटवाई है और मनमोहन सिंह सरकार तमाशाई बनी रही है , यानि इस हमाम में सब नंगे हैं .
यूपी विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से मुलायम सिंह यादव को सत्ता सौंप कर राज्य के मुसलमानों ने जो इतिहास लिखा उस का समाजवादी सरकार ने भरपूर बदला दिया है . मुजफ्फर नगर और शामली के मुसलमानों की हत्या करके और उन्हें बेघर करके जो पुरस्कार अखिलेश यादव की सरकार ने उन्हें दिया है उसे हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों ने अपनी खुली आंखों से देखा है . घर बार तबाह हो जाने के कारण अपने ही देश में टेंट में अपने बच्चों और बजुर्गो के साथ परेशान ज़िन्दगी बसर कर रहे , मजबूर व बे सहारों की मदद करना तो दूर उनके के ज़खमों पर नमक छिड़कने में व्यस्त हैं सपा के नेता - .
पिछले दनों मुलायंसिंह यादव ने मुजफ्फर नगर दंगों के राहत शिविरों के सिलसिले में जो शर्मनाक बयान दिया है उसकी चौतरफा निंदा का सिलसिला जारी है . धार्मिक और राजनीतिक नेता उनसे माफी की मांग कर रहे हैं , मगर मुलायम की दीदा दिलेरी का कोई जवाब नहीं , कैसे बेशर्मी के साथ उन्होंने कहा कि '' कांग्रेस और भाजपा समर्थक उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार की छवि खराब करने की साजिश के तहत राहत शिविरों में रुके हुए हैं , दंगा पीड़ितों तो घर लौट चुके हैं , जो वहां रह रहे हैं वह वास्तव में भाजपा और कांग्रेस के लोग हैं , आप पता लगा लें ''
कितने दुख की बात है कि अपने बयान पर मुलायम सिंह कतई शर्मिंदा नहीं हैं , लेकिन उनकी पार्टी के मुस्लिम नेताओं वफादारी निभाते होए सफ़ाइ देने के लिए कूद पड़े हैं और यहां तक कह दिया कि ' नेता जी की नीयत और ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता . सपा के इन सूरमा को महीनों से राहत शिविरों में रह रहे हजारों लोग नजर नहीं आ रहे हैं . उनके दर्द को महसूस करना तो दूर की बात उनके के लए हक बात बोलने की भी हिम्मत नहीं है .
आखिर क्या वजह है कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के मंत्रियों , उच्च नेता , पार्टी के प्रतिनिधि इन शिविरों की दर्दनाक स्थिति की समीक्षा की लए आज तक नहीं जा सके . क्या यह उनकी ज़िमेदारी नहीं है कि वे शिविरों में बेमौत मर रहे बच्चों के ज़िन्दगी के लिए उचित कदम उठायें ? . जानलेवा बीमारी ग्रस्त उन बच्चों के इलाज के लिए डॉक्टरों की टीम भेजें और अच्छी दवाओं की व्यवस्था करें . जबकि मीडिया और सामाजिक व धार्मिक संगठनों से जुड़े लोग रौज़ना दंगा पीडितो का दर्द बांटने के लिए पहुंच रहे हैं , और चीख चीख कर कह रहे हैं कि यूपीए सरकार उनकी देख भाल में बिल्कुल नाकाम है. उन्हें कैमपों में आकर उनकी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए मगर सरकार के प्रतिनिधि कान में रूई ठूंस कर दंगे पर राजनीति तो कर रहे हैं, लेकिन वहाँ जाने से कतरा रहे हैं . मुलायम के गांव सैफई में रक़स और सरूर की महफ़िलें सजी हुई हैं , मुलायम अखिलेश यादव विदेशी लरकियों के ठुमके से लुत्फ़ अन्दोज़ हो रहे हैं , सरकारी कोष से करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे ओं हैं , मेहमानों के लिए गैस हीटर लगाया गया है मगर मृफरनगर के राहत शिविरों में रह रहे लोग दाने दाने को तरस रहे हैं . यही है अल्पसंख्यकों के मसीहा का असली चेहरा .
खेमो की इन बस्तियों में आज भी हर तरफ भय और आतंक का माहौल है , अफरातफरी और बेचैनी है , मासूमों की मौत पर लाचार और बेबस मा के आँख से आंसू सूख नहीं पा रहे हैं , बीमारी और भूख से दंगा पीड़ितों का बुरा हाल है , खाने पीने कि चीज़ों का अभाव है . कुल मिलकर देखें तो यह देश के उन मुसलमानों के साथ धोका है जो हमेशा मुलायम जैसे नेताओं को अपना मसीहा मानते हैं और बदले में यह मसीहा उन्हें मौत देते हैं और उनका अपने गंदे बयान से मज़ाक़ उड़ाते हैं।
लेखक इंक़लाब में सब एडिटर हैं
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