मोदी जी की है सरकार, कोई क्या करेगा यार(http://www.azadexpress.com/article.php?id=5589#.U_SoZpSSxQk)
मोदी जी की है सरकार, कोई क्या करेगा यार
'मोदी जी की है सरकार, कोई क्या करेगा यार' कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों के लोगो में यह सोच बहुत तेजी से बढ़ रही है. मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी अपने एक लेख में बताया है कि कट्टरपन में विश्वास रखने वाले लोग ज्यादा खतरनाक रूप धारण कर रहे हैं और उन्हें लोकप्रियता मिल रही है, वरना अमित शाह जैसे लोगों का चमकना कोई मायने नहीं रखता. पिछले दिनों देश में तीन समाचार सुर्खियों में रहे . इन खबरों का संबंध कहीं न कहीं देश की अखंडता, ला एंड ऑडर और शांति से है। केंद्र में जब से संघ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी है और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 'सीएम से पीएम' बने हैं उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश की जो हालत है वह अब किसी से छुपि नहीं.खास तौर पर जो लोग अखबारों और समाचार चैनलों के आदी हैं उनकी इन हालात पर गहरी नज़र है ,उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि महंगाई पर काबू पाने और भारत में अच्छा दिन आने का दावा करने वाले मोदी जी ने सरकार की बागडोर संभालते ही जनता को महंगाई का ऐसा झटका दिया कि हर तरफ़ महंगाई बेकाबू होकर सरपट दौड़ रही है -हालांकि यह ऐसा विषय नहीं है के जिस पर ध्यान नहीं दिया जाए और महंगाई से निजात दिलाने का ढंढोरा पीटने वालों को बख्श दिया जाए, लेकिन उस समय हिंदुस्तान के लिए सबसे बड़ी समस्या ला एंड आर्डर की बिगड़ती स्थिति हे. हर तरफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर काबू पाने का. देश की बहुसंख्यक (हिंदू) और सबसे बड़ी अल्पसंख्यक (मुस्लिम) के बीच बढ़ती नफरत का विषय सबसे महत्वपूर्ण है। एक साजिश के तहत हिंदू और मुसलमानों के दिलों में एक दूसरे के खिलाफ सुलगायी जा रही नफरत की चिंगारी पर अगर समय पर पानी नहीं डाला गया तो यह देश राख के ढेर में तब्दील हो जाएगा और दुनिया की कोई ताकत उसे बर्बाद होने से बचा नहीं सकती -
हम ने जिन तीन खबरों का उल्लेख किया है, दरअसल उन्ही तथ्यों पर आधारित हैं जिन पर विचार किए बिना भारत में शांतिपूर्ण वातावरण का सपना देखना रेगिस्तान में पानी लगाने के बराबर है -पहली खबर कर्नाटक के शहर भटकल से है जिसे देश खुफिया एजेंसी 'आतंकवाद की नर्सरी'बताती है - यहां एक अगस्त को आयोजित एक कार्यक्रम में अंग्रेजी और हिन्दी के प्रसिद्ध पत्रकार अजीत साही ने यह दावा करके सनसनी फैला दी कि भारत में आतंकवाद की जितने भी घटनाएं हुई हैं, इन सभी में केंद्र की एजेंसियों का भी हाथ है. खुफिया एजेंसियों का मजाक उड़ाते हुए उन्हों ने कहा कि मुझे भारत के मुसलमानों पर आश्चर्य हो रहा है कि यह कैसे लोग हैं कि साल में केवल २ बार बम विस्फोट करने आते हैं और पुलिस कई आईएसआई एजेंटों और मुसलमानों को गिरफ्तार कर लेती है, लेकिन दूसरी ओर यही पुलिस जब जंगलों में नक्सलियों को पकड़ने जाती है तो नक्सली ऐसे पलट कर हमला करते हैं कि पुलिस के होश उड़ जाते हैं और वे पुलिस की पकड़ में नहीं आते . उनके अनुसार यह लड़ाई सिर्फ मुसलमानों की नहीं है, बल्कि पूरे हिन्दुस्तान के लोगों की लड़ाई है, यह सिद्धांत की लड़ाई है जो न हिन्दू के विरूद्ध है और न पुलिस के , न इंटेलिजेंस के खिलाफ है और न ही भाजपा या हिंदूवादी संगठनों के. बल्कि यह अधिकार की लड़ाई है और यह लड़ाई हमें लड़कर, घबरा कर, परेशान होकर और डिफेंसिव पोज़िशन अख्तियार करके नहीं लड़नी है. यह लड़ाई अदालत में नहीं लड़ी जा सकती ,बल्कि इस लड़ाई को लड़ने के लिए हमें सड़कों पर उतरना होगा, देश को मजबूत और स्थिर करने के लिए मुसलमानों को मैदान में आने की जरूरत है. में पुरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जब भारत के पांच लाख मुसलमान दिल्ली के रामलीला मैदान में जमा हो जाएंगे तो देश के हालात बदलने शुरू हो जाएंगे.
अजित साही ने जाते जाते एक सवाल कर दिया, जो देश के सभी इंसाफपसंद लोगों को बहुत गंभीरता से सोचने और इसका समाधान ढूंढने पर मजबूर करता है. साही के अनुसार बम फटता है तो ५० लोग मरते है और १० गिरफ्तार होते हैं, मगर 5 या10 वर्षों के बाद वह निर्दोष साबित होते हैं. यह केवल युवाओं पर अत्याचार नहीं है कि गिरफ्तार हुए थे, बल्कि पूरे हिंदुस्तान पर ज़ुल्म है. इन लोगों की रिहाई पर आप समझते हैं कि इंसाफ हुआ है तो यह गलत है, क्योंकि इन लोगों ने बम विस्फोट नहीं किए तो किस ने किया ? कहाँ हैं वह लोग जिन्हों ने विस्फोट किए. हम मास्टरमाइंड का पता लगाए बिना नौजवानों की रिहाई पर जश्न मनाने लगते हैं, देश के इंसाफपसंद नेताओं और बुद्धिजीवियों को इस मुद्दे पर एकजुट होकर ठोस रणनीति तैयार करना चाहिए कि आखिर ये लड़के बेगुनाह हैं तो देश भर में हुए बम धमाकों का गुनहगार कौन है? और इस किस्से को यहीं पर समाप्त नहीं करना चाहिए, बल्कि यहां से शुरू करना ही समय की ज़रूरत है .
दूसरी खबर उत्तर प्रदेश से है जहां लोकसभा चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद केवल १० सप्ताह में 600 सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई, उनमें से 10 प्रतिशत १२ विधानसभा में या उनके आसपास हैं जहां अगले कुछ महीनों में उपचुनाव होने हैं. आँकड़े के मुताबिक इस मामले में कोई पार्टी पीछे नहीं है. वह चाहे बी जे पी हो, सपा हो या फिर बसपा. कोई दो बड़े धार्मिक समूहों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों को सांप्रदायिक विषय बनाने से नहीं चूकती. जिन क्षेत्रों में दलित और मुसलमान मिलकर रहते हैं वहां उत्तेजना फैलाने और दोनों ओर को उत्तेजित करने के स्पष्ट सबूत मिले हैं. इसके कारण समाज 2 भागों में विभाजित हो रहा है।
आख़री खबर बिहार से है जिसे राजनीति की जन्मभूमि कहा जाता है खुदा का शुक्र है कि यह राज्य एक ज़माने से सांप्रदायिक दंगों से सुरक्षित है. यह बिहार सरकार की बड़ी उपलब्धि है, या जनता की महत्वपूर्ण भूमिका , या बेहतर कानूनी प्रबंधन में राज्य की पुलिस का बहुत बड़ा हाथ है, यह तय करना मुश्किल है, लिकन बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के औराई ब्लाक के अंतर्गत स्थित एक मुस्लिम आबादी वाली बस्ती 'हरपुर बेशी ' में रमजान के अंतिम सप्ताह में उत्पन्न होने वाली एक घटना ने संकेत दे दिया है कि बिहार की स्थिति भी ठीक ठाक नहीं रही. यहां शांति में भांग डालने वाले लोग भी केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार से उत्साहित हैं और राज्य की शांति भंग करने पर आतुर है .सावन के महीने के " चौथे सोमवार "यहाँ के लोगो के लिए बड़ी आफत से कम नहीं थे, परंतु उस बस्ती के मुसलमानों ने धैर्य से काम लेते हुए इस नई मुसीबत को झेल लिया. औराई ब्लॉक के मुसलमान और हिन्दू का इतिहास बड़ा आदर्श रहा है- यहां का माहौल कभी भी जाति के आधार पर गनदा नहीं हुआ, लेकिन पिछले दनों कुछ लोगो के इशारे पर क्षेत्र के हिंदुओं ने भाईचारे की परंपरा का हनन करते हुए एक नई परंपरा की नींव डाल दी है जो कभी ज्वालामुखी बनकर फट सकती है
सोमवार की रात एक नदी से पानी लेकर मंदिर में चढ़ाने के मामूली कार्यक्रम को इस तरह अंजाम दिया गया जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली गयी हो. रात के सन्नाटो में दो हज़ार हिंदुओं का हजूम हथियारों से लैस होकर डी जे बजाते हुए भड़काऊ नारों के साथ इस पवित्र कार्य को पूरा करने के लिए इस बस्ती से गुज़रता है जो मुस्लिम आबादी वाली है, जहां न कोई मंदिर न कोई धार्मिक स्थान. इसलिए इस घटना को केवल माहौल खराब करने के इरादे से उठाया गया कदम क़रार दिया जा सकता है।
हैरत की बात है कि उस जगह तक जाने के लिए और कई आसान रास्ते थे, लेकिन पता नहीं क्यों लोगों ने बीच गांवों से गुजरने वाली सड़क का चयन किया. भड़काउ सलोगन के साथ लगातार चार यात्रा इस मुसलमान बस्ती से होकर गुज़री। इस दौरान पूरी बस्ती के पुरुषों और महिलाओं की भय और खौफ से जो हालत रही होगी इसका अंदाजा रात के अंधेरे में हजारों की संख्या में शामिल इस उग्र भीड़ से लगाया जा सकता है जो कुछ कर गज़ने का इरादा रखते हों। बिहार सरकार और जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह इस लापरवाही पर औराई थाने की पुलिस, पंचायत के मुखिया और सरपंच से सवाल करे। इससे पहले कि असामाजिक तत्व बिहार को गुजरात और उत्तर प्रदेश बनाने की साजिश में सफल हो जाएँ , इस खेल के मास्टरमाइंड का पता लगाकर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करना समय की ज़रुरत है।
लेखक उर्दू अख़बार इंक़लाब से सम्बद्ध हैं
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