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Showing posts from October, 2009

अच्छी सेहत के लिए खुश रहना जरूरी

सारा आकाश और 'होटल किंग्स्टन' धारावाहिकों में केंद्रीय भूमिका निभा चुकी सोनल सहगल अब बड़े पर्दे की ओर रुख कर चुकी हैं। हिमेश रेशमिया अभिनीत 'रेडियो' से सोनल अपनी फिल्मी पारी की शुरुआत कर रही हैं। नागेश कुकनूर निर्देशित 'आशाएं' में भी वह जॉन अब्राहम के साथ काम कर रही है। इसके अलावा विवाहित सोनल 'जाने कहाँ से आयी है' और 'इश्क अनप्लग्ड' में भी अदाकारी दिखाएंगी। आइए जानते है सोनल की फिटनेस के राज- [स्वास्थ्य के प्रति जागरूक] '' मैं फुर्सत के लम्हों में सेहत पर सारा ध्यान केंद्रित करती हूं। सेहत को लेकर मैं जागरूक हूँ। नियमित रूप से व्यायाम करती हूँ। हर दिन जिम नहीं जा पाती। ज्यादातर घर पर ही व्यायाम करती हूँ। घर पर अधिकतर किक बॉक्सिंग करती हूँ। किक बॉक्सिंग ऐसा व्यायाम है,जो शरीर की प्रत्येक मांसपेशियों के लिए कारगर है। किक बॉक्सिंग के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों से अवगत होने के बाद अब मैं स्वतंत्र रूप से इसे घर पर करने लगी हूँ। सुबह लगभग 30 मिनट तक योगासन करने के बाद अन्य व्यायाम करती हूँ। '' [तनाव आस-पास फटकने नहीं देती] '

इंटरनेट पर दोस्ती अरे बाबा न बाबा

अगर आप इंटरनेट पर दोस्ती करने में यकीन रखते हैं तो जरा संभल जाइए, क्योंकि दिल बहलाने के लिए की जाने वाली यह दोस्ती एक दिन आपकी जान भी ले सकती है। ब्रिटेन में एक ऐसा ही वाकया सामने आया है। डरहम के डार्लिगटन में 32 साल के युवक ने लड़की के साथ इंटरनेट पर दोस्ती की और फिर उसे मिलने के लिए बुलाया। जब लड़की मिलने आई तो युवक ने उसका अपहरण करके हत्या कर दी। डेली मेल के अनुसार, लड़के ने फेसबुक पर उससे दोस्ती की और फिर गुप्त तौर पर मिलने के लिए उसे बुलाया। लड़की ने सोचा कि यह लड़का 16 साल का है और वह इसी लालच में उससे मिलने चली गई। अखबार के अनुसार, इस लड़के के खिलाफ पहले भी यौन अपराध के कई मामले दर्ज थे। यह वाकया कल आपके साथ भी हो सकता है। इसलिए इंटरनेट पर दोस्ती करने से बचें और बिना किसी जान-पहचान के किसी से न मिलें।

उफ़ ये महंगाई ...?

मुल्क में जानलेवा महंगाई दिन बदिन बढती जा रही है -आदमी एक परेशनी से ओभर नही पता के दोसरी सामने आजाती है-ये खोफ लोक सभ्हा चुनाव के वक्त ही महसूस किया गया था की चुनाव के बाद सरकार महंगाई की मर से लोगों को बचा नही सकेगी-और यही हुवा जिस का खतरा था -दिल्ली की हकुमत हो या सेन्ट्रल ,किसी को भी आम लोगों की फिकर नही है-यही वजह है के खाने पिने की चीज़ से लेकर हर वोह सामान जो जिन्दा रहने के लिए ज़रूरी है सरकार महंगी करती जा रही है-आम आदमी को इस कमर तोड़ महंगाई से कैसे बचाया जाए उसकी फिकर किसी को भी नही है -आज राष्ट्रीय राजधानी में दिल्ली परिवहन निगम [डीटीसी] और ब्लू लाइन में सफर करने वालों के लिए एक और परेशानी में उस वक़्त और इजाफा होगया जब दिल्ली सरकार ने बस भाड़े में डेढ़गुना इजाफा करदिया -दिल्ली सरकार ने राजस्व में कमी की भरपाई के लिए बसों के भाड़े में बढ़ोतरी का निर्णय किया है। यात्रियों ने बस भाड़े में बढ़ोतरी पर नाराजगी जताई है। वे पहले से ही खाद्य वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमत और नरमी से प्रभावित हैं। दूरसंचार कंपनी में विपणन अधिकारी सौरभ गुलाटी ने कहा कि अगले कुछ साल में कोई चुनाव नहीं होने हैं,

दो गज ज़मीं ना मिल सकी ...

किसी भी देश के इतिहास में बहादुर शाह जफर जैसे कम ही शासक होते हैं जो अपने देश को महबूबा की तरह मुहब्बत करते हैं और जीवन भर देशप्रेम में डूबे रहने के बाद 'कू ए यार' में जगह न मिल पाने की कसक के साथ परदेस में दम तोड़ देते हैं। बादशाह जफर ने जब रंगून में कारावास के दौरान अपनी आखिरी सांस ली तो शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर गजल का यह शेर अवश्य रहा होगा 'कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू ए यार में।' भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर उर्दू के एक बड़े शायर के रूप में भी विख्यात हैं। उनकी शायरी भावुक कवि के बजाय देशभक्ति के जोश से भरी रहती थी और यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेज शासकों को 'तख्ते लंदन तक हिन्दुस्तान की शमशीर [तलवार] चलने की' चेतावनी दी थी। जनश्रुतियों के अनुसार प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब बादशाह जफर को गिरफ्तार किया गया तो उर्दू जानने वाले एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने उन पर कटाक्ष करते हुए यह शेर कहा, 'दमदमे में दम नहीं खैर मांगो जान की, बस हो चुकी जफर शमश

नन्हे-मुन्नों के लये टीवी देखना मुज़िर

2साल से छोटे बच्चों के टीवी देखने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए क्योंकि इससे उनके विकास पर असर पड़ता है। यह कहना है ऑस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का। ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए प्रथम आधिकारिक दिशा निर्देशों के अनुसार कई घंटों तक टीवी के सामने यूं ही बैठे रहने से बच्चों के सामाजिक मेल-मिलाप एवं किसी विषय पर ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक दो साल से कम आयु के बच्चों के टीवी देखने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा देना चाहिए, जबकि दो से पांच साल तक के बच्चों के लिए टीवी देखने का अधिकतम समय दिन में एक घंटा निर्धारित कर देना चाहिए। ये दिशा-निर्देश मोटापा रोकने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है। ये दिशा निर्देश अगले वर्ष से लागू हो जाएंगे। मेलबोर्न के रॉयल चिल्ड्रन्स अस्पताल द्वारा तैयार उपरोक्त दिशा-निर्देश मुख्यत: चाइल्ड केयर सेंटर्स के लिए है। यद्यपि अभिभावकों को भी यह सलाह दी गई है कि घर पर भी वे अपने बच्चों को कम से कम टीवी देखने दें। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बच्चे ज्यादा टीवी

जहाँ लगती है आदमी की बोली

केंद्र सरकार द्वारा जारी नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक अब भी ग्रामीण आबादी का पांचवां हिस्सा मात्र 12 रुपये रोजाना में जीवन जीने को अभिशप्त है। ग्रामीणों की आय का आधा से ज्यादा हिस्सा यानी एक रुपये में 35 पैसे भोजन जुटाने में खर्च हो जाते हैं। इन तथ्यों के आइने में जब उत्तर बिहार में गरीबी उन्मूलन की दिशा में हुए सरकारी प्रयासों की बात करते हैं तो रूह कांप उठती है। यहां के शहरों में हर सुबह मजदूरों की बोली लगती है। अर्थशास्त्री डा. अम‌र्त्य सेन की बात यहां पूरी तरह सच दिखती है, जिसमें उन्होंने कहा है कि समस्या उत्पादन की नहीं, बल्कि समान वितरण की है। बिहार ke मुजफ्फरपुर शहर के चौराहे हर सुबह गुलजार हो जाते हैं मजदूरों और ठेकेदारों से। अलस्सुबह गांव से आए हजारों मजदूरों की यहां बोली लगती है। इनके अपने-अपने ठिकाने हैं। ज्यों-ज्यों सूरज आसमान चढ़ता है, इनकी कीमत कम होती जाती है। पश्चिमी चंपारण के बेतिया शहर में यह नजारा लालटेन चौक, इमली चौक, छावनी चौक, राज ड्योढी तथा हरिवाटिका चौक पर देखी जा सकती है। मजदूरों में अधिकतर मजदूरी नहीं मिलने के कारण घर लौट जाते हैं। बगहा

मिशन सर सय्यद अहमद खान

इस अजीम इन्सान की पैदाइश १७,ओक्तुबेर १८१७ में दिल्ली के एक मोअजिज़ घराने में हुई -उनके पिता सय्यद मुत्तकी भी एक सोफी बुजुर्ग थे-उन्होंने अलग अलग उलमा से अरबी ,फारसी औरहिकमत की तालीम हासिल की-मोलवी खालिलुल्लाह से कानून की तालीम ली और उन्ही के दफ्तर में मोलाज्मत करली-तरक्की कर के कमिशनर के यहाँ मुंशी मोक़रार हुए-1 ८५७के इंक़लाब के वकत सर सय्यद अहमद खान जिला बिजनोर में ही थे-इस इन्कलाब को अंग्रेजों ने बगावत का नाम दिया था और उसका जिम्मदार मुसलमानों को ठहराया -यही वजह थी के अंग्रेजों ने मुसलमानों के घरों को तबाह व बर्बाद करना शुरू करदिया -इसी दौरान उनका तबादला मुरादाबाद होगया -जहाँ मुसलमानों पर सब से ज़यादा ज़ुल्म ढाया गया -सर सय्यद अहमद खान ने उन मजलूमों की जन बचे इस सिलसिले में उन्होंने एक किताब ,असबाब बगावत ऐ हिंद ,लिखी -जिस में बगावत के असल असबाब बयां किए गए थे-१८५७ के बाद मोगल हकुमत जो सिर्फ़ लालकिला तक रहगई थी ख़तम होगई-अँगरेज़ पुरे मुल्क पर काबिज़ होगे और मुल्क के हालात बहुत तेज़ी से बदलने लगे-समाज में ज़िन्दगी गुजारने और हकूमत तक रसाई के लिए ज़माने के हिसाब से अंग्रेज़ी और जदीद

भरपेट भोजन व शिक्षा के मोहताज बच्चे

तरक्की के तमाम दावों और दुनिया की उम्मीदों का केंद्र बनने के बावजूद भारत में नवजात शिशुओं और बच्चों की कुपोषण से मौत के आकड़े उसका सिर शर्म से नीचा कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रन' के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में हर साल पैदा होने वाले बच्चों में से आधे शिशुओं की पैदा होते ही मृत्यु हो जाती है। इस सर्वेक्षण पर भरोसा करें तो आठ से दस प्रतिशत सालाना स्थिर आर्थिक वृद्धि का सपना देख रहे भारत में 20 लाख बच्चे तो हर साल अपना पाचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही भूख से होने वाले कुपोषण और उसके कारण लगने वाली बीमारियों से दम तोड़ देते हैं। दुनिया में कुपोषण का शिकार हर तीसरा बच्चा भारत में रहता है और हर पंद्रहवें सेकेंड में एक बच्चा मौत की नींद सो जाता है। शिक्षा के लिहाज से तो इन नन्हे बच्चों की और दुर्गति है। गावों में पढ़ने को स्कूल नहीं हैं और जहा स्कूल हैं, वहा कहीं इमारत नदारद है तो कहीं शिक्षकों का अता-पता नहीं है। गनीमत है कि इस मामले में भारत न तो अकेला है और न ही अग्रणी देशों में है। दुनिया के जिन 75 लाख बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मयस्सर नहीं है, उनमें उस अमेरिक

भरपेट भोजन व शिक्षा के मोहताज बच्चे

तरक्की के तमाम दावों और दुनिया की उम्मीदों का केंद्र बनने के बावजूद भारत में नवजात शिशुओं और बच्चों की कुपोषण से मौत के आकड़े उसका सिर शर्म से नीचा कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रन' के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में हर साल पैदा होने वाले बच्चों में से आधे शिशुओं की पैदा होते ही मृत्यु हो जाती है। इस सर्वेक्षण पर भरोसा करें तो आठ से दस प्रतिशत सालाना स्थिर आर्थिक वृद्धि का सपना देख रहे भारत में 20 लाख बच्चे तो हर साल अपना पाचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही भूख से होने वाले कुपोषण और उसके कारण लगने वाली बीमारियों से दम तोड़ देते हैं। दुनिया में कुपोषण का शिकार हर तीसरा बच्चा भारत में रहता है और हर पंद्रहवें सेकेंड में एक बच्चा मौत की नींद सो जाता है। शिक्षा के लिहाज से तो इन नन्हे बच्चों की और दुर्गति है। गावों में पढ़ने को स्कूल नहीं हैं और जहा स्कूल हैं, वहा कहीं इमारत नदारद है तो कहीं शिक्षकों का अता-पता नहीं है। गनीमत है कि इस मामले में भारत न तो अकेला है और न ही अग्रणी देशों में है। दुनिया के जिन 75 लाख बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मयस्सर नहीं है, उनमें उस अमेरिक

अजीब मगर सच?

सूचना क्रांति के इस दौर में एक व्यक्ति ऐसा भी है जिसने खुद को एक कमरे में बंद कर रखा है और पिछले 47 साल से वह बाहर नहीं निकला है। बाहरी दुनिया से उसका कोई संपर्क नहीं है। चीन के साथ युद्ध, मां की मौत और भाई का विवाह किसी भी मौके पर थूला बोरा कमरे से बाहर नहीं निकला। असम के सोनितपुर जिले में तेजपुर के समीप देउरी गांव में रह रहे 63 वर्षीय बोरा को उस समय भी अपने कमरे से बाहर निकलने की जरूरत महसूस नहीं हुई जब चीन के हमले के बाद शत्रु की सेनाएं इलाके को लगभग घेर चुकी थीं और लोगों को वहां से निकाला जा रहा था। बताया जाता है कि 1962 में बोरा मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो गया। मां की डांट उसे सहन नहीं हुई और 16 वर्षीय यह युवक एकान्तवासी हो गया। मां की मौत और भाई के विवाह पर भी वह कमरे से नहीं निकला। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सत्यन गोस्वामी ने बताया कि मैंने कई बार बोरा को बाहर निकलने के लिए समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं निकला। अपने एकांतवास का उसने कोई कारण भी नहीं बताया। बोरा के परिजन भी बताते हैं कि पिछले 47 साल में वह एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकला। बोरा के परिजनों के अनुसार, उसे भो

लोगों के दिल में आज भी धड़कते हैं जेपी

भ्रष्टाचार और सत्ता की तानाशाही के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सन 1974 में संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजाया था। क्रांति के उनके इस आह्वान से पूरा बिहार आंदोलित हो उठा था। आज भी जेपी आंदोलन की यादें लोगों के दिलो-दिमाग में रची-बसी हैं। नौजवानों ने इसमें खास भूमिका निभाई थी। लेकिन लोगों को इस बात का मलाल है कि आंदोलन के बाद सरकार तो बदली, लेकिन व्यवस्था आज भी नहीं ज्यों की त्यों है। जबकि लालू यादव व नीतीश कुमार सरीखे सूबे के कद्दावर नेता कभी जेपी आंदोलन के ही सिपाही रहे हैं। जेपी आंदोलन के एक सिपाही रहे पश्चिमी चंपारण के ठाकुर प्रसाद त्यागी के लिए जेपी आज भी आदर्श हैं। रामपुकार मिश्र कहते हैं 'जेपी को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नई पीढ़ी को उनकी जीवनी पढ़ाई जानी चाहिए।' अजय सुहाग की माने तो जेपी ने जिस छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की नींव रखी, वह आज सिर्फ बेतिया में कायम है। बगहा के अखिलेश्वर पांडेय, सुधाकर तिवारी व उमेश उपाध्याय ने भी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी। अखिलेश्वर पांडेय व सुधाकर तिवारी के मुताबिक वे लोग नरकटियागंज टीपी वर्मा कालेज के छात्र थे। क्रांतिकारी भाषणों से प

मदरसा board

हिंदुस्तान में मरकजी मदरसा बोर्ड बनने की बात सरकार ज़ोर व शोर से कर रही है-मगर मज़हबी उलमा और मिल्ली तंजीमें सरकार के इस फासले की शदीद मोखालेफत कर रहे है-उनका कहना है के सरकार इस चोर दरवाज़े से दिनी मदरसों में दाखिल होने की कोशिश कर रही है-यही वजह है के सिर्फ़ ४ फीसद मदरसों के तलबा के लिए iस कदर परेशान हे-m u स्लिम ऍम पि भी उलमा की इस राइ से मुत्तफिक है-u नका कहना है के सरकार अगर वाकई मुस्लिम बचों के लिए कुछ कर न चाहती है तो उसे फले ९६ फीसद उन बचों के लिए करे जो स्कूल में पड़ते है -यही राइ करीब सबी मुसलमानों की है-वो दिनी मदरसों में सरकार की मुदाख्लत कभी नही चाहे गी -मुसलमानों का यह शभा बिल्कुल दुरुस्त है के सरकार के इस क़दम से मदरसों का नुकसान होगा -गोर करने की बात यह भी है के सरकार पहले ९६ फीसद उन मुस्लिम बचों के लिय किया क्र रही है-अज मुसलमान अपने ही मुल्क में इतना पीछे किउन है -अगर सरकार मुसलमानों पर ईमानदारी से तवजो देती तो आज मुसलमनो की यह हालत न होती -सेंतारल एजुकाशन बोर्ड के बन्ने से एक बड़ा नोकसान ये है के बोर्ड के मदरसों में तलबा पर धेयाँ कम दया जाता है -ढंग से तरबियत