बेटी रहमत भी है और नेमत भी

एमडीडीएम मुज़फ्फरपुर में यूएनएफपीए की ओर से आयोजित 'सपनों को चली छूने' कार्यक्रम के उद्घाटन पर जब बात उठी बेटियों की हिफाजत की तो लगभग दो हजार बेटियों की आंखों से आंसू फूट पड़ा-मानो वजूद कायम रखने का सपना बर्फ की मानिंद पिघल कर बाहर आने लगा। कोख में मार डाली जाने वाली बेटियों की चर्चा करते डा। विजया भारद्वाज की पहले डबडबाई थीं -उन्होंने कहा कि पति चाहे कितना भी दबाव दे, कभी अपनी कोख में बच्ची को मत मारिएगा। मेरे पास महिलाएं आती हैं, कहती हैं कि पांचवीं बेटी है, परिवार में मारने का दबाव है। वह रोती है, मैं भी रोती हूं। और बस। इतना बोलते-बोलते डा.भारद्वाज की आंखें छलक आईं तो छात्राएं भी आंसुओं को बहने से नहीं रोक सकीं। सवाल यह है की जब हमारे समाज में बेटी को रहमत और बड़ी नेमत कहा गया है तो फिर बेटी के साथ ऐसा दोहरा सलोक किउँ होता है-इस्लाम मज़हब में बेटी की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की रसूलुल्लाह सल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया ''जिसने दो बेटी की परवरिश की और उसे अच्छी तर्ब्यत दी क़यामत के दिन मैं और वोह इस तरह आएँगे जिस तरह मेरे हाथ की ये दो उन्गुल्या ,,

यही वजह है की इस्लाम में बेटी की बड़ी अहमियत है मगर चंद न अक्ल इन्सान ऐसी ग़लत हरकत करते है यकीनन वोह सज़ा के मुसतहिक़ है -बेटा बेटी में किसी तरह का फर्क करना किसी भी तरह से सही नही है बलके गुनाह ख कम है-

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